हर मौसम वो मर्ज़ी से जी सकता है आखिर वो भी तो इंसान है। हर मौसम वो मर्ज़ी से जी सकता है आखिर वो भी तो इंसान है।
भाग्य का अस्तित्व कहाँ, पुरुषार्थ ही तो भाग्य को अस्तित्व में लाया। भाग्य का अस्तित्व कहाँ, पुरुषार्थ ही तो भाग्य को अस्तित्व में लाया।
नारी तन को वस्तु समझते, कुत्सित मन के वश में होकर, पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर, रख दी सारी प्रकृति ... नारी तन को वस्तु समझते, कुत्सित मन के वश में होकर, पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर,...
प्रेम के आधार पर घर अनगिनत खड़े हो जाते हैं फिर एक दूजे के प्रेम में जीवन सखा हो जाते प्रेम के आधार पर घर अनगिनत खड़े हो जाते हैं फिर एक दूजे के प्रेम में जीवन सखा...
कन्या ही बनती "मां" कन्या ही बनती "मां"
बिना किसी गलती के अक्सर, बिना किसी गलती के अक्सर,